Thursday, June 5, 2014

भूखा 
मैले कुचले कपड़ो में 
फटी पुरानी चप्पल में 
तपते लोहे के भांति चमकते 
सूरज की छाँव में 
सरकता जा रहा था 
दो जून की रोटी का हिसाब
भी  कर पा रहा था
माँ ने 10 रुपये का नोट दिया था 
कहा जा  कुछ खा आना 
अपनी बहनो  के लिए भी कुछ ले आना 
दुकान पहुंच के बोला भाई समोसे दे दे 
दुकान वाला बोला 15 रुापये दे दे मेरे भाई 
में सहमा , दुबका शर्म से  बोला 
मेरे पास सिर्फ 10 का नोट है मालिक 
जरा 3 समोसे दे दो 
भाग यहाँ से भंगी कहीं के 
कह के , दुत्कार के मुह फेर  लिया उसने अपना। 
जा बैठा थोड़ी दूर में 
लगा सोचने करू क्या 
की  एक कुलीन वर्ग की महिला आई 
और समोसे दे बैठी अपने चाँद के टुकड़े को 
फेंक दिए उसने वो अधखाये टुकड़े 
 पास पड़े कचरे में 
दौड़ के पंहुचा में और उठा लिए 
कुलबुलाते हुए मुह में डाल लिए 
ख़ुशी का पल नसीब हो गया था 
बहनो के समोसों का जुगाड़ हो गया था !





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