यादें
तू निर्मोही बन चल पड़ी
छोड़ कर मुझे अपने हाल
बचा न पाया में काल की
इस तलवार का वार |
कभी सोचा न था की
रूप तेरा ऐसे रुखसत होगा ।
कर के मुझे तनहा ऐसे
कहीं और पुलकित होगा ।
निकाल तो दोगे यादों से अपनी
दिल से मेरे याद कैसे निकालोगे|
जब गाड ही दी है कील इतनी
निशाँ कहा से मिटाओगे|
अब कुछ अंत ना है संभव
जेहन में बस कुछ लम्हे है बाकी
पहुचाने जिन्हें हम एक खुबसूरत मुकाम पर
हर पल है राजी ।
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