Sunday, June 1, 2014

यादें 


तू निर्मोही बन चल पड़ी 
छोड़ कर मुझे अपने हाल 
बचा  पाया में काल की 
इस तलवार का वार

कभी सोचा था की 
 रूप तेरा ऐसे रुखसत होगा  
कर  के मुझे तनहा ऐसे 
कहीं और पुलकित होगा


निकाल तो दोगे यादों से अपनी 
दिल से मेरे याद कैसे निकालोगे

जब गाड ही दी है कील इतनी 
निशाँ कहा से मिटाओगे|  

अब कुछ अंत  ना  है संभव 
जेहन में बस कुछ लम्हे है बाकी 
पहुचाने जिन्हें हम एक खुबसूरत मुकाम पर 
हर पल है राजी  


 

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